नूह और जल प्रलय की कहानी

नूह और जल प्रलय की कहानी | 7 Points Story of Noah

परमेश्वर का दण्ड और दया

ये बात जल प्रलय से पहले की है। परमेश्वर ने देखा कि मनुष्य वैसे नहीं रह रहा जैसा वह चाहता था। वह जानता था कि वे एक दूसरे को हानि पहुँचाते और जो कुछ उसने बने उसे नष्ट कर रहे थे।

कुछ समय बाद पृथ्वी दुष्ट मनुष्यों से भर गई। उसके विचार सदा ही बुरे होते थे। प्रभु उन्हें बना कर पछताया। उसने कहा, मैं इन दुष्ट मनुष्यों को पशुओं और पक्षियों सहित नष्ट कर दूँगा।” परन्तु प्रभु नूह नामक एक व्यक्ति से प्रसन्न था। यह नूह की कहानी है। उसके तीन पुत्र शेम, हाम और येपेत थे। उस समय नूह ही केवल एक भला व्यक्ति था। वह परमेश्वर का मित्र था। नूह वह सब करता था जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता था। (उत्पति 6:5-10)

नाव बनाने की आज्ञा

जल प्रलय से पहले परमेश्वर ने नूह कहा, “मैं इन सब मनुष्यों अन्त करने पर हूँ। ये इस संसार को रहने का एक बुरा स्थान बना रहे है। तू अपने लिए एक बहुत बड़ी नाव बना। उसमे अच्छी लकड़ी लगाना। मैं तुझे उसका नाप दूँगा। उसमे अलग-अलग कोठरियाँ बनाना। उसके भीतर और बाहर राल लगाना। मैं पृथ्वी पर जल-प्रलय भेजूँगा।

और जल प्रलय सब जीवित प्राणियों को नष्ट करेगा। परन्तु तुझे मैं एक प्रतिज्ञा दूँगा। इस नाव में पत्नी के साथ जा। अपने पुत्रो और उनकी पत्नियों को भी साथ ले जा। सब जाति के पशुओं और पक्षियों में से एक-एक नर और मादा को भी नाव में ले जाना। सब प्रकार का भोजन लेकर अपने लिए और सब पशुओं के एकत्र करके रखना।” नूह ने वह सब कुछ किया जो परमेश्वर ने कहा। (उत्पति 6:13-22)

नूह का नाव में जाना

बहुत से देशों में बहुत जल प्रलय के बारे में पुरानी कहानियाँ प्रचलित है। यह कहानी हमें बताती है कि परमेश्वर ने बुराई का दण्ड जल प्रलय से दिया। परन्तु उसने उन्हें बचा लिया जिन्होंने उसकी आज्ञा माना। जब नाव तैयार हो गई तब प्रभु नूह से कहा, “अपने पुरे परिवार के साथ नाव में चला जा। मैं जानता हूँ कि पुरे संसार में केवल एक तू ही है जो भला करता है अपने साथ सब प्रकार के पक्षियों और जानवरों के सात-सात जोड़े जो शुद्ध हो, ले जाना।

परन्तु शुद्ध न हो उसके एक-एक जोड़े ही लेना। इस तरह सब प्रकार के जानवर और पक्षी जीवित रहेंगे। बाद में इन्ही के बच्चे पृथ्वी में भर जाएँगे। अब से सात दिन के बाद मैं चालीस दिन लगातार बरसात भेजूँगा। मैंने जितने जीवित प्राणी बनाये है , वह नष्ट कर देगी।” नूह ने फिर वह जो प्रभु ने उसे कहा था। वह उसकी पत्नी, पुत्र और उनकी पत्नियां नाव में चले गए।

जैसा परमेश्वर ने कहा था। वे जानवरों पक्षियों को भी नाव में ले गए। तब प्रभु ने नाब का द्वार बन्द कर दिया। सात दिन बाद जल प्रलय आ गया। (उत्पति 7:1-12, 19,24)

नूह और जल प्रलय की कहानी

जल प्रलय की शुरुआत

यह उस समय हुआ जब नूह 600 वर्ष का था। चालीस दिन लगातार वर्षा होती रही। पृथ्वी के नीचे का सब जल और आकाश से सब जल के एक साथ मिलने से भयानक जल प्रलय हो गया। नूह की नाव जल के उपाए तैर रही थी। जल ऊपर उठता गया पहाड़ों ढाँप लिया। सब से ऊँचे पहाड़ से भी लगभग सात मीटर ऊँचा जल का स्तर उठ गया। 150 दिन वहां ठहरा रहा।

जल प्रलय का रुकना

परमेश्वर, नूह और सब जानवरों को जो नाव में थे, नहीं भूला था। पृथ्वी के नीचे से आने वाला जल रुक गया था। आकाश से होने वाली वर्षा गई थीं। 150 दिन तक जल घटता ही गया। अन्त में, नाव अरारात पहाड़ पर टिक गई। जल लगातार घटता गया जब तक कि पहाड़ों की चोटियाँ न दिखाई देने लगी। 40 दिन बाद, नूह ने खिड़की खोली और एक कौआ उड़ा दिया जो लौट कर नहीं आया। वह उड़ता रहा जब तक की जल पूरी तरह सूख न गया।

तब नूह ने यह देखने के लिए कि पृथ्वी सूख गई है की नहीं, एक कबूतरी भेजा। परन्तु जल तब तक भी पृथ्वी पर भरा हुआ था। कबूतरी को कोई भी ऐसा स्थान न मिला जहाँ वह सकती। वह लौटकर नाव पर आ गई और नूह ने उसे अंदर नाव में ले लिया। सप्ताह के बाद उसने फिर बाहर भेजा। वह अपनी चोंच में एक नया पत्ता लिए हुए साँझ को उसके पास लौट आई। इससे नूह ने जान लिया की जल नीचे चला गया है एक सप्ताह बाद उसने कबूतरी को फिर बाहर भेजा। इस बार वह लौटकर नहीं आई। (उत्पति 8:1 -22)

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नूह का जहाज से बाहर आना

अब नूह ने नाव की छत को हटा दिया। उसने चारों तरफ देखा और यह देखा कि भूमि सूखती जा रही है। अन्त में भूमि पूरी तरह सूख गई। अब तक नूह 601 वर्ष का हो चूका था।
परमेश्वर ने नूह से कहा, “अपने परिवार सहित नाव से बाहर आ जा। अपने साथ सभी पक्षियों और जानवरों को भी ले आ। उनके बहुत बच्चे हो और वे तरफ फैल जाएँ।” तब नूह अपने परिवार के साथ नाव से बाहर आया।

जल प्रलय के बाद अपनी-अपनी जाति और झुंड के अनुसार सभी जानवर और पक्षी निकल आए। नूह ने प्रभु के लिए वेदी बनाई। हर एक जाति में से एक-एक चुने हुए पशु पर पक्षियों को उसने बलि किया। परमेश्वर को होमबलि करके उसने बलिदान चढ़ाया। प्रभु प्रसन्न हुआ, और उसने स्वयं से कहा, “हाँ, बचपन से ही हर एक जन बुरा ही करता है। परन्तु अब पृथ्वी पर फिर मैं जीवनों को नष्ट नहीं करूँगा। पृथ्वी पर सदा बोने का और काटने का काम होता रहेगा। ठण्ड और गर्मी, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात सदा होते रहेंगे।”

परमेश्वर के वाचा का चिन्ह

“वाचा” शब्द का अर्थ है एक महत्वपूर्ण समझौता जो परमेश्वर और उसके लोगों के बीच में हुआ। अक्सर जब वाचा बान्धी जाती है, तो प्रतिज्ञा को याद दिलाने के लिए सब को कुछ न कुछ दिया जाता है। यहाँ याद दिलाने के लिए जो दिया गया वह कुछ विशेष था। जिसे हम आज भी देखते हैं। परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से भी ये कहा, “मैं अब अपनी वाचा तुझसे और तेरे पुत्रों और वंश से बाँधता हूँ।

यह उनके लिए भी ऐसी ही होगी जो तेरे बाद उत्पन्न होंगे। यह उन सब जानवरों और पक्षियों के लिए भी है जो तेरे साथ जल प्रलय के बाद नाव में से बाहर आये हैं। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर कभी जल प्रलय से पृथ्वी का नष्ट नहीं होगा। मैं बादलों में अपना धनुष रख रहा हूँ। वह मेरी प्रतिज्ञा का चिन्ह होगा। वह तेरे लिए और सब जीवित प्राणियों के लिए है। जब भी धनुष आकाश में दिखाई देगा, मैं अपनी वाचा को स्मरण करूँगा और फिर कभी भी पृथ्वी पर मैं सब प्राणियों को नष्ट नहीं करूँगा।


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