जय मसीह की दोस्तों! Yeshu Aane Wala Hai Blog में आपका स्वागत है। आज, इस लेख के माध्यम से, क्रूस पर कहे गए यीशु के सात वचन नज़र डालने जा रहे हैं। जब येशु मसीह ने क्रूस पर अपना जीवन बलिदान किया, तो उन्होंने सात महत्वपूर्ण बातें कहीं जिन्हें उनके “यीशु के सात वचन” के नाम से जाना जाता है।
यीशु के सात वचन सिर्फ़ उनके अंतिम वचन नहीं थे, बल्कि इनमें गहरी आध्यात्मिक और आध्यात्मिक सच्चाईयाँ समाहित हैं। ये हमें प्रेम, क्षमा, मोक्ष, विश्वास और समर्पण की गहराई तक ले जाते हैं। आइए हम ईसा के सात वचनों को विस्तार से समझें।
1. हे पिता, तू उन्हें क्षमा कर (लूका 23:34)
यीशु के 7 वचन में से पहला वचन हमें परमेश्वर के असीम प्रेम और क्षमा को दर्शाता है। जब यीशु को सूली पर चढ़ाया गया, तो उसने अपने उत्पीड़कों के लिए यह प्रार्थना की।
यह हमें सिखाता है कि हमें अपने शत्रुओं से प्रेम करना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए, भले ही वे हमें चोट पहुँचाएँ। यीशु के 7 वचन हमें ईसाई जीवन का मूल आधार सिखाते हैं—क्षमा और प्रेम।
2. तू आज मेरे साथ स्वर्ग में होगा। (लूका 23:43)
यीशु के सात वचन में से यह दूसरा वचन उद्धार का संदेश देता है। जब एक अपराधी ने यीशु पर विश्वास किया, तो उसे तुरंत अनंत जीवन का आश्वासन मिला।
यह हमें सिखाता है कि उद्धार केवल विश्वास से ही संभव है, और चाहे कोई कितना भी पापी क्यों न हो, अगर वह पश्चाताप करता है और यीशु को स्वीकार करता है, तो उसे अनुग्रह प्राप्त होता है।
3. देख, यह तेरा पुत्र है। (यूहन्ना 19:26-27)
यीशु की सात वचनों में से यह वचन प्रेम और देखभाल को दर्शाती है। यीशु ने अपनी माता मरियम को यूहन्ना को सौंपा, जो हमें सिखाता है कि मसीही जीवन में हमें अपने परिवार और समुदाय का ख्याल रखना चाहिए।
यह न केवल आध्यात्मिक शिक्षा है, बल्कि संसार में एक व्यावहारिक जीवन का मार्गदर्शन भी करती है। इस वचन से हमें सीखने की जरुरत है।
4. हे पिता तूने मुझे क्यों छोड़ दिया? (मत्ती 27:46, मरकुस 15:34)
इस आयत के ज़रिए यीशु ने हमारे सभी पापों का बोझ अपने ऊपर ले लिया। इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि पाप हमें परमेश्वर से अलग करता है, लेकिन यीशु के सात वचन हमें यह भी सिखाती हैं कि उसका बलिदान हमें फिर से परमेश्वर के करीब लाने के लिए था।
5. मुझे प्यास लगी है मैं प्यासा हूँ (यूहन्ना 19:28)
यह वचन यीशु के सात वचन में से एक है जो उनकी मानवता को दर्शाती है। कि येशु मसीह भी पूरी तरह से एक मनुष्य थे, उन्होंने हमारे सारे दर्द और पीड़ा को सहा।
यह हमें उनकी कृपा की गहराई को समझने में मदद करता है और हमें यह भी सिखाता है कि ईसाई जीवन न केवल आध्यात्मिक है बल्कि मानवीय भी है।
6. सब कुछ पूरा हो गया है (यूहन्ना 19:30)
यह यीशु के सात वचन में सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके मिशन की पूर्णता को दर्शाता है। कि क्रूस पर उन्होंने पाप के लिए दंड का भुगतान किया और उद्धार का मार्ग खोला। यह हमें आश्वस्त करता है कि हमारा उद्धार पूरा हो गया है और हमें बस यीशु मसीह पर विश्वास करना है।
7. पिता अपनी आत्मा आपको सौंपता हूँ (लूका 23:46)
यह यीशु के सात वचन में से अंतिम वचन समर्पण का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें भी अपना जीवन पूरी तरह से परमेश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। यीशु ने मृत्यु के सामने भी पूर्ण विश्वास और समर्पण दिखाया, और हमें भी उसी तरह परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए।
निष्कर्ष
यीशु के सात वचन सिर्फ़ उनके अंतिम वचन नहीं थे, बल्कि वे आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक और प्रेरणा हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें क्षमा, प्रेम, विश्वास, समर्पण और मोक्ष को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। क्रूस पर यीशु के बलिदान की याद सिर्फ़ गुड फ्राइडे तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसका असर हमारे जीवन के हर दिन पर होना चाहिए।
अगर हम अपने जीवन में यीशु के सात वचनों को अपनाएँ, तो हम वाकई उनके अनुयायी बन सकते हैं और दुनिया में उनके प्रेम और कृपा को फैला सकते हैं।

लेखक: पास्टर अनिमेष कुमार
बाइबल शिक्षक, पास्टर, सुसमाचार प्रचारक,
संस्थापक: “येशु आने वाला है मिनिस्ट्री”
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