आप सभी भाई बहनों को प्रभु यीशु मसीह के नाम में जय मसीह की, आप सभी का Yeshu Aane Wala Hai Blog में स्वागत है। इस लेख में हम Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? इसके विषय में विस्तार से जानेगें। इस विषय पर अलग-अलग लोगों का अलग-अलग विचार और नजरिया है। कुछ लोग यह मानते हैं, कि जीवन में दुख और सुख जिंदगी रूपी सिक्के के दो पहलू हैं, यह हर किसी के जीवन में आते ही हैं और हर एक इंसान को इन दोनों पहलुओं का सामना करना पड़ता है। और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस बात पर यकीन करते हैं, की असल में सुख-दुख होता ही नहीं है, यह सब सिर्फ जीवन में अपने कर्म में उलझने के चक्कर में होता है।
जब एक व्यक्ति के जीवन सब कुछ ठीक रहता है तो उसे सुख का अनुभव होता है, और जब उस व्यक्ति के जीवन माहौल उसके मन के विपरीत रहता है तो उसे दुख का अनुभव होता। और कुछ लोग यह भी मानते हैं कि परमेश्वर उसके पापों के दंड स्वरूप उसके जीवन में दुखों को लेकर आता है। तो आज इस लेख के माध्यम से मैं आपको मनुष्य के जीवन में दुखों का आने का कारण क्या है इसके विषय में अच्छे से समझाने वाला हूं ताकि आपको भी यह पता चल सके कि आखिर का दुख जीवन में क्यों आता है।
मैं आपको आज जीवन में दुख क्यों आता है? इस विषय पर बाइबल के वचनों के द्वारा कुछ बातें बताना चाहता हूं । तो चलिए आज मैं आपको Step By Step Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? के बारे में बताऊंगा।
Jeevan Mein Dukh | जीवन में दुख क्यों आता है?
अक्सर लोग यह कहते हैं कि परमेश्वर की इच्छा के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं होता है। और ऐसा देखा जाता है कि जब भी जीवन में दुखों के बारे में किसी से बात किया जाए, तो बहुत सारे लोग यही जवाब देते हैं, कि यह सब ऊपर वाले (परमेश्वर) की मर्जी पर निर्भर है। इसका मतलब यह है, कि इस धरती पर जो कुछ भी घटनाएं घटती हैं वह सब ऊपर वाले यानी परमेश्वर की इच्छा से ही घटती हैं? (मेरे इस सवाल पर विशेष ध्यान दीजिएगा)। और अगर वास्तव में ऐसा ही है कि सब कुछ परमेश्वर की इच्छा पर निर्भर है, यानी कि अच्छी और बुरी दोनों चीजें परमेश्वर खुद करते हैं तो कुछ बातों को हमें बहुत गहराई से समझना पड़ेगा।
उदाहरण के लिए यह निम्नलिखित बातें।
- रोज जितनी लड़ाई झगड़े होते हैं यह सब परमेश्वर की इच्छा पर ही है?
- दुनिया में जितनी भी मारकाट या हत्या होती हैं परमेश्वर की इच्छा पर ही है?
- मनुष्य जितने भी बुरे काम करता है ये भी परमेश्वर की इच्छा से ही होता है?
- व्यविचार, ईर्ष्या, लालच, इत्यादि। यह सब भी परमेश्वर की इच्छा पर ही होते हैं?
यह कुछ ऐसे सवाल जिनको हमारे लिए जानना बहुत ही ज्यादा जरूरी है, अगर हम इस बात को जानना चाहते हैं कि Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? (जीवन में दुख क्यों आता है?) तो इन सवालों को भी अपने मन में रखना होगा। और फिर हम बहुत ही अच्छी रीति से सारी बातों को समझ पाएंगे।
ध्यान देने वाली बात
वास्तव में हम सबको इस सच्चाई को जानने और मानने की आवश्यकता है, कि परमेश्वर ने ना केवल इस संसार की सृष्टि की है, उसके साथ साथ इस संसार के लिए परमेश्वर ने कुछ नियम और कानून भी बनाए हैं। और जब मनुष्य परमेश्वर के द्वारा बनाए हुए कानून और नियमों का उल्लंघन करता है, इसके परिणाम स्वरूप सब मनुष्य को उसका फल भुगतना पड़ता है।
दुखों की शुरुआत कहां से हुई? – Where Did The Sorrows Begin?
जब हम इस बात को सोचते हैं कि Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? तो हमें इसकी शुरुआत कहां से हुई इसके बारे में जानना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। पवित्र बाइबल हमें बताती है, कि परमेश्वर ने कैसे इस संसार की सृष्टि की और मनुष्य को बनाया, लेकिन मनुष्य ने परमेश्वर की आज्ञा को ना मानकर उस नियम और कानून को तोड़ा जिसे परमेश्वर ने बनाया था। बाइबल हमें बताती है, कि परमेश्वर यहोवा ने इस संसार के प्रथम इंसान आदम को बनाया, और उसे यह आज्ञा दी, कि वह भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है उसका फल ना खाए, क्योंकि यदि वह उसके फल को खाएगा, तो उसका जो जीवन है वह बिल्कुल बदल जाएगा, और वह आत्मिक रूप से मर जाएगा।
और अगर हम बाइबल को पढ़ते हैं तो हम पाते हैं, कि आदम ने अपनी पत्नी हव्वा के कहने में आकर उस फल को खाया जिसके विषय में परमेश्वर ने उन्हें खाने से मना किया था। और ऐसा करने के कारण परमेश्वर के नियम के अनुसार जो दंड आना था, वह उन दोनों के जीवन में आया। और इसी जगह से मनुष्य के जीवन में दुखों का आरंभ हुआ, और उसके बाद इस संसार में जितने भी मनुष्य आदम और हव्वा के द्वारा जन्म लेकर आए, वह सब अपने ही अभिलाषा और अपनी इच्छाओं में फसकर पाप के अधीन हुए, और उसके फल स्वरुप उनके जीवन में दुख आया। (उत्तपत्ति 2:16-17)
नियम और कानून क्या है? – What Are The Rules And Regulations?
परमेश्वर के द्वारा दिए गए आज्ञा को तोड़ने के कारण कैसे आदम और हव्वा के जीवन में दुख और परेशानी आई, इस बात को आसानी से समझने के लिए एक उदाहरण के द्वारा हम जान सकते हैं। कि कैसे नियम तोड़ने के कारण ही दंड आता है, जैसे कि हमने ऊपर की लेख में पढ़ा कि Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? और दुःख की शुरुआत कहां से हुई। तो आइए इस बात को हम एक उदाहरण के माध्यम से समझे।
नियम तोड़ने की सजा – Punishment For Breaking The Rules
उदाहरण- हम सभी जिस देश में रहते हैं, उस देश के कुछ नियम और कानून है, जिसे हम सभी को मानना या उसका पालन करना अनिवार्य होता है। और अगर कोई इस नियम या कानून का पालन नहीं करता तो उसे उसकी सजा भी मिलती है, और यह सजा उस व्यक्ति को इसलिए नहीं दी जाती की सजा देने वाला उस व्यक्ति से जलन रखता है, लेकिन यह सजा उस व्यक्ति पर इसलिए आ पड़ती है क्योंकि उसने उस देश के कानून का उल्लंघन किया है, और जो कोई उस देश के कानून का उल्लंघन करेगा, उसके जीवन में उसके फल स्वरुप को सजा अपने आप लागू हो जाती है।
जैसे कि मैं भारत देश का नागरिक हूं, और भारत देश का यह कानून है, कि जब हम अपने वाहन में बैठकर मार्ग में चलते हैं तो अगर मार्ग में चलते समय कोई लाल बत्ती आ जाए, तो हमें अपने वाहन को उस लालबत्ती पर रोकना पड़ता है। और यदि हम लाल बत्ती के रहते हुए अपने वाहन को उस जगह पर नहीं रोकते, और लाल बत्ती के रहते हुए उसको पार करते हैं तो हम पर कानूनी कार्रवाई की जाती है सही मायने में हमारा चालान किया जाता है। और यदि हम लाल बत्ती के रहते हुए,उस जगह पर अपने वाहन को रोककर रखते हैं, और हरी बत्ती होने के बाद अपने वाहन को आगे लेकर जाते हैं, तो हम पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जाती, क्योंकि इसमें कानून का कोई भी उल्लंघन नहीं होता है,
इस लेख को जरूर पढ़ें :- Bible को कैसे पढ़ें?
दुनिया का पहला दुखी इंसान – First Sad Person In The World
बहुत बार हमने यह सुना होगा कि लोगों के जीवन में बहुत सारे दुख और मुसीबतें आती हैं, और कई बार आपने यह विचार भी किया होगा कि इस दुनिया में सबसे पहले दुख किसके जीवन में आया था। इस बात का जवाब जानने के लिए हमें बाइबल के कुछ आयातो को पढ़ना होगा, और हमें यह देखना होगा कि इस दुनिया में सबसे पहले इंसान के जीवन में दुख किस प्रकार से आया। बाइबल हमें बताती है कि जब परमेश्वर ने इस संसार को बनाया था तो परमेश्वर ने सब कुछ अच्छा बनाया था। (उत्तपत्ति 1:13)
दुनिया का पहला इंसान – World’s First Man
जब परमेश्वर ने इस दुनिया के पहले इंसान को बनाया था तब बिल्कुल अपनी तरह पवित्र बनाया था। उस समय मनुष्य में कोई पाप नहीं था और ना कोई बुराई थी, और परमेश्वर ने मनुष्य को बनाते समय खुद चुनाव करने का क्षमता के साथ बनाया था। परमेश्वर ने मनुष्य को बनाने के बाद उन्हें इस पृथ्वी पर सब चीजों पर अधिकार रखने की आज्ञा दी। परमेश्वर ने मनुष्य को समुद्र की मछलियां, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारे पृथ्वी पर सब रेंगने वाले जंतुओं, जो पृथ्वी पर रहते हैं अधिकार दिया। इस प्रकार परमेश्वर ने मनुष्य नर और नारी करके उनकी सृष्टि की और पृथ्वी पर रखा और तमाम वस्तुओं पर उन्हें अधिकार दिया।
दुनिया का पहला इंसान केसा था? – How Was The World’s First Human Being?
परमेश्वर ने जब मनुष्य को बनाया था, तो उसे बाजारों में मिलने वाले खिलौने की तरह नहीं बनाया था, जिनमें हम चाबी भरकर अपने इच्छा के अनुसार चला सकते हैं। क्योंकि खिलौने की खुद की कोई इच्छा नहीं होती है, उसे कोई दूसरा कंट्रोल करता है। लेकिन परमेश्वर ने जब इंसान को बनाया था, तो इंसान को एक मशीन या रोबोट की तरह नहीं बनाया था। पर उसको ऐसा बनाया था कि वह स्वयं अपनी इच्छा से अपने लिए चुनाव कर सके। लेकिन चुनाव का अधिकार देने के साथ-साथ परमेश्वर ने मनुष्य को कुछ नियम और कायदे कानून दिए थे, और परमेश्वर ने मनुष्य को कहा था कि उन नियमों को ना तोड़े, अगर वह ऐसा करेंगे तो उसके परिणाम स्वरूप उन्हें दंड भुगतना होगा।
पहले इंसान की गलती – First Man’s Fault
दुनिया के पहले इंसान को चुनाव का अधिकार होने के बाद भी उसने परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ा जिसके कारण उन पर दंड आया। यहीं से मनुष्य के Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? (जीवन में दुख क्यों आता है?) इसके बारे में अच्छे से समझ सकते हैं।और यह दंड उन पर इसलिए आया था, क्योंकि उन्होंने वह काम किया था जिस काम को उन्हें करने के लिए मना किया गया था। परमेश्वर ने इंसान को स्वयं निर्णय लेने का जो अधिकार दिया था उस अधिकार का इंसान ने गलत इस्तेमाल किया और परमेश्वर के नियम और कानून को तोड़कर अपने ऊपर दंड लेकर आए। इसके परिणाम स्वरूप उन्हें बहुत दुख का सामना करना पड़ा। इस प्रकार से मनुष्य के जीवनों में नियम और कानून तोड़ने की वजह से दुःख का आना आरंभ हो गया।
Conclusion
दोस्तों, अब मैं आपको इस लेख के अंत में अपना अनुभव बताना चाहता हूं, जिससे आपको भी ये पता चले, कि Jeevan Mein Dukh Kyon Aata Hai? मैं विश्वास करता हूं कि आज आपने इस लेख को बहुत ही ध्यान पूर्वक से पड़ा है। अब आप जरा सोचिए कि मनुष्य के जीवन में दुखों के लिए कौन जिम्मेदार है मनुष्य खुद या फिर परमेश्वर? मेरे विचार से इसके लिए मनुष्य खुद जिम्मेदार है। उसी प्रकार जब किसी इंसान के जीवन में दुख आता है तो कहीं हद तक उस दुख के लिए वह इंसान खुद ही जिम्मेदार होता है। क्योंकि बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि लोग अपने जीवन में कुछ ऐसे फैसले ले लेते हैं जिनकी वजह से बाद में उन्हें पछताना पड़ता है
और जब वह पछतावा करते हैं तो वह खुद को दोषी ठहराने की वजह परमेश्वर को या ईश्वर को दोषी ठहराते हैं। जो कि बिल्कुल गलत है क्योंकि हम सब जानते हैं कि परमेश्वर कभी किसी का बुरा नहीं करता लेकिन इंसान के जीवन में जब दुख और मुसीबतें आती हैं तब वह परमेश्वर को भी दोषी ठहराने से पीछे नहीं हटता। लेकिन सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत है कि दुख और मुसीबतें तो इंसान खुद अपने जीवन में लेकर आता है।
होना तो यह चाहिए कि जब किसी इंसान के जीवन में दुख आए तो वह परमेश्वर के पास जाकर मदद मांगे लेकिन होता यह है कि जब लोगों के जीवन में दुख आते हैं तो वह परमेश्वर को ही दोषी ठहराते है उन सारे दुखों के लिए। कि परमेश्वर आपने मेरे जीवन में इतना दुख क्यों दिया है। इसलिए हमेशा याद रखें कई बार दुख और मुसीबतें हमारी खुद की वजह से हमारे जीवन में आती हैं इसलिए परमेश्वर को दोषी ना ठहरा है, परंतु प्रार्थना करें, कि परमेश्वर उन दुखों से आपको बाहर निकाले।
तुम्हें विश्वास करता हूं कि इस लेख के माध्यम से जो बातें मैंने आपको समझाई हैं उनको आपने बहुत ही अच्छे रीति से समझा है, तो आगे से अपने जीवन को सही रीति से चलाएं और किसी भी मुसीबत में पड़े तो परमेश्वर को याद जरूर करें और मदद मांगे। धन्यवाद
FAQ
Ques – 1 अच्छे लोगों को दुःख क्यों मिलता है?
Ques – 2 जीवन में अगर दुख आए तो क्या करना चाहिए?
Ques – 3 दुख में भगवान साथ क्यों नहीं देते?
Ques – 4 दुःख का अंत क्या है?
Ques – 5 दुख को सुख में कैसे बदलें?