क्रिसमस ट्री का इतिहास | क्या बाइबल में इसका कोई महत्व है? | Biblical Truth About Christmas Tree

क्रिसमस ट्री का इतिहास | क्या बाइबल में इसका कोई महत्व है? | Biblical Truth About Christmas Tree

आप सभी का Yeshu Aane Wala Hai Blog में स्वागत है। आज के इस लेख के माध्यम से हम जानने वाले हैं। क्रिसमस ट्री का इतिहास | क्या बाइबल में इसका कोई महत्व है? | Biblical Truth About Christmas Tree के बारे में। आज इस लेख में हम यह समझेंगे कि बाइबल के अनुसार 25 दिसंबर को क्रिसमस ट्री लाना क्यों है अशुभ? और क्या सच में क्रिसमस ट्री घर में लगाने से अशुभ होता है? इन सारी बातों को आज हम विस्तार से जानेंगे।

क्रिसमस ट्री का इतिहास और बाइबल से इसका संबंधता

क्रिसमस ट्री, जो आज दुनिया भर में क्रिसमस (Christmas) के उत्सव का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है, का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक विस्तृत और जटिल है। यह परंपरा कैसे शुरू हुई? इसका क्या महत्व है? और क्या यह बाइबल के अनुसार उचित है? इन सवालों पर विचार करना जरूरी है, खासकर मसीही विश्वासियों के लिए। तो आइए इसे गहराई से समझे।

क्रिसमस ट्री का इतिहास

1. प्राचीन समय में सदाबहार वृक्ष का महत्व

क्रिसमस ट्री का इतिहास और जड़ें प्राचीन पगन (गैर-ईसाई) परंपराओं में पाई जाती हैं। प्राचीन सभ्यताओं में सदाबहार वृक्षों (Evergreen Trees) का उपयोग जीवन, पुनर्जन्म और विजय के प्रतीक के रूप में किया जाता था।

  • मिस्र की सभ्यता: मिस्रवासी सर्दियों के समय सूर्य देवता रा की पूजा के लिए खजूर की शाखाओं का उपयोग करते थे।
  • रोमन संस्कृति: रोमन लोग सर्दियों के त्योहार सैटर्नेलिया (Saturnalia) के दौरान सदाबहार पौधों से घर सजाते थे।
  • नॉर्स मिथोलॉजी: उत्तरी यूरोप में वाइकिंग्स सदाबहार वृक्षों को सूर्य देवता बाल्डर का प्रतीक मानते थे।

2. मध्यकालीन यूरोप में पैरेडाइस ट्री (Paradise Tree)

मध्य युग में जर्मनी में “पैरेडाइस ट्री” सजाने की परंपरा थी, जो एडम और ईव की बाइबिल की कहानी से संबंधित था। इसे 24 दिसंबर को सजाया जाता था और इसमें सेब लटकाए जाते थे, जो ज्ञान के वृक्ष (Tree of Knowledge) को दर्शाते थे।

3. आधुनिक क्रिसमस ट्री की शुरुआत

  • 16वीं शताब्दी में जर्मनी के ईसाईयों ने सदाबहार पेड़ों को घर में सजाना शुरू किया। ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध सुधारक मार्टिन लूथर ने मोमबत्तियों से सजे पेड़ की परंपरा शुरू की।
  • 19वीं सदी में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया और प्रिंस अल्बर्ट ने क्रिसमस ट्री की परंपरा को लोकप्रिय बनाया। इसके बाद यह परंपरा अमेरिका और बाकी दुनिया में तेजी से फैल गई।
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क्रिसमस ट्री और बाइबल

अब सवाल उठता है कि क्रिसमस ट्री लगाने की परंपरा बाइबल के अनुसार सही है या नहीं। इस पर विचार करते समय बाइबल के कुछ प्रमुख वचनों और सिद्धांतों को समझना जरूरी है।

1. बाइबल में पेड़ों से जुड़ी चेतावनी

बाइबल में यिर्मयाह 10:2-4 में एक चेतावनी दी गई है, जो क्रिसमस ट्री की प्रथा से मेल खाती है।

“यहोवा यों कहता है: अन्यजातियों के चालचलन को न सीखो और न आकाश के चिन्हों से भय खाओ… क्योंकि अन्यजातियों के रीत-रिवाज व्यर्थ हैं। वे वन के पेड़ को काटते हैं, कारीगर उसे हाथों से बनाते हैं, और उसे चांदी-सोने से सजाते हैं। वे उसे कीलों और हथौड़ों से ऐसा मजबूत करते हैं कि वह हिल न सके।”

यह वचन उन मूर्तिपूजक परंपराओं की ओर इशारा करता है, जहां लोग पेड़ों को सजाकर उनकी पूजा करते थे। हालांकि आधुनिक क्रिसमस ट्री की पूजा नहीं की जाती, लेकिन इसकी उत्पत्ति मूर्तिपूजक रीति-रिवाजों से हुई है, जो मसीही विश्वास के साथ मेल नहीं खाती।

2. प्रभु की आराधना में शुद्धता

बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि हमें केवल परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए और किसी भी अन्य रीति-रिवाज (क्रिसमस ट्री का इतिहास) या प्रतीक को, जो मूर्तिपूजा या गैर-धार्मिक परंपराओं से जुड़ा हो, अपनी आराधना में शामिल नहीं करना चाहिए।।

  • बाइबल में निर्गमन 20:3-5: कहता है, हमें को छोड़ किसी दूसरे को अपना ईश्वर करके नहीं मानना चाहिए। और ना अपने लिये कोई मूर्ति बनाना चाहिए।

क्रिसमस ट्री का इतिहास, चाहे इसे धार्मिक प्रतीक के रूप में न भी माना जाए, उसकी उत्पत्ति और उपयोग एक ऐसी परंपरा से हुई है जो बाइबल के सिद्धांतों के विपरीत है।

3. मसीह का जन्म और क्रिसमस ट्री

बाइबल में कहीं भी यीशु मसीह के जन्म को मनाने के लिए पेड़ लगाने या सजाने का उल्लेख नहीं है। यीशु का जन्म एक साधारण और विनम्र स्थान पर हुआ था। क्रिसमस ट्री जैसी परंपराएं मसीह के जन्म के वास्तविक अर्थ से ध्यान भटकाती हैं और बाहरी सजावट पर जोर देती हैं।


क्रिसमस ट्री का इतिहास पर वीडियो

मसीही विश्वासियों को क्रिसमस ट्री क्यों नहीं लगाना चाहिए?

  1. मूल पगन परंपराएं: क्रिसमस ट्री का इतिहास और उत्पत्ति पगन रीति-रिवाजों से हुई है, जो मसीही विश्वास के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। इसे अपनाना उन परंपराओं को अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता देना है, जिन्हें बाइबल ने अस्वीकार किया है।
  2. मसीह पर ध्यान केंद्रित करना: क्रिसमस का असली उद्देश्य यीशु मसीह के जन्म और उनके द्वारा दिए गए उद्धार पर ध्यान केंद्रित करना है। क्रिसमस ट्री और अन्य सजावट इस ध्यान को भटकाते हैं।
  3. मूर्तिपूजक प्रथाओं से दूरी: मसीही विश्वासियों को हर उस प्रथा से बचना चाहिए जो मूर्तिपूजक रीति-रिवाजों से जुड़ी हो। बाइबल हमें चेतावनी देती है कि हमें परमेश्वर की आराधना में किसी भी अन्य रीति-रिवाज को शामिल नहीं करना चाहिए।
  4. समझदारी और सादगी: यीशु ने सादगी और नम्रता का उदाहरण प्रस्तुत किया। क्रिसमस ट्री जैसी परंपराएं अक्सर दिखावे और भौतिकता को बढ़ावा देती हैं, जो मसीह के संदेश के विपरीत है।

क्रिसमस ट्री का इतिहास जानने के बाद क्या करना चाहिए?

मसीही विश्वासियों को क्रिसमस मनाते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका ध्यान मसीह और उनके उद्धार के सन्देश पर केंद्रित रहे।

1. बाइबल आधारित उत्सव:

  • यीशु मसीह के जन्म की कहानी को पढ़ें और साझा करें।
  • उनके जीवन और शिक्षाओं को परिवार और समाज में लागू करने पर जोर दें।

2. आध्यात्मिक गतिविधियां:

  • प्रार्थना और आराधना में समय बिताएं।
  • गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें, जैसा मसीह ने सिखाया।

क्रिसमस ट्री का इतिहास निष्कर्ष

क्रिसमस ट्री की परंपरा भले ही आज के समय में एक सामान्य उत्सव का हिस्सा बन गई हो, लेकिन इसकी जड़ें उन परंपराओं में हैं जो बाइबल के सिद्धांतों से मेल नहीं खातीं। मसीही विश्वासियों को यह समझना चाहिए कि उनकी आराधना और उत्सव परमेश्वर के वचन के अनुरूप होने चाहिए। क्रिसमस का असली उद्देश्य यीशु मसीह के जन्म और उनके द्वारा दिए गए उद्धार के संदेश को समझना और साझा करना है। इसलिए, क्रिसमस ट्री जैसी परंपराओं से बचना, मसीह केंद्रित जीवन जीने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।


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