दोस्तों, आप सभी का हमारे एक और लेख के माध्यम से Yeshu Aane Wala Hai Website में स्वागत है। आज के इस लेख के माध्यम से हम जानने वाले हैं, यीशु मसीह की मुख्य आज्ञाओं के बारे में विस्तार से जानने जा रहे है। जैसे कि पश्चाताप, विश्वास, नया जन्म, पवित्र आत्मा को ग्रहण करना, यीशु के पीछे चलना, प्रार्थना, विश्वास, आदि के बारे में । इन सभी बातों को जानने के लिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें, ताकि आप इन बातों को और अच्छे से समझ सके। धन्यवाद
1. पश्चाताप
पश्चाताप दोहरी क्रिया है : पाप से विमुख होना और परमेश्वर की ओर फिरना।
बाइबिल कहती है, “कि मन फिराओ क्योकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” मत्ती 4: 17,
तुम लोग सकेत फाटक से प्रवेश करने की कोशिश करो।” लूका 13:24
मत्ती 6:33, परन्तु ” सबसे पहले तुम उसके (परमेश्वर के) राज्य और धार्मिकता की खोज करो।”
2. विश्वास (Belief)
हमे सुसमाचार पर विश्वास करना है; यीशु मसीह में और पिता में विश्वास करना है।
मरकुस 1:15 “मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।” यह यीशु ने कहा, यूहन्ना ने नहीं।
यूहन्ना 14:1 “तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो, येशु पर भी विश्वास रखो” यह एक निश्चित और महत्पूर्ण आज्ञा है।
यूहन्ना 6: 29 “परमेश्वर का कार्य यह है कि तुम उस पर जिसने उसने भेजा है, विश्वास करो।”
3. नया जन्म
नया जन्म उस व्यक्ति के लिए, जिसका हृदय-परिवर्तित होता है, आत्मा की एक रहस्यमय कार्यवाही है।यूहन्ना 3:7 “अचम्भा न कर, कि मैंने तुझसे कहा, कि तुम्हे नए सिरे से जन्म लेना अवश्य है।”लूका 10:20 “इस बात से आनन्दित हो, कि तुम सबका नाम स्वर्ग पर लिखे है। “मत्ती 12:33 “यदि तुम पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो; या पेड़ को तुम निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी तुम निकम्मा कहो; क्योकि पेड़ अपने फल ही से पहचाना जाता है, “हृदय परिवर्तन ही एकमात्र समाधान है .
4. पवित्र आत्मा को ग्रहण करना
प्रत्येक मसीह को पवित्र आत्मा का वास-स्थान और उसके द्वारा सामर्थी होना है। यूहन्ना 20:22 “उसने उन पर फूंका और उनसे ये कहा, पवित्र आत्मा को लो।”
लूका 24:49 “जब तक तुम स्वर्ग से समर्थ न पाओ, तब तक तुम इसी स्थान (येरूशलेम) नगर में ठहरे रहना।”
5. यीशु मसीह के पीछे चलना
विश्वासी के सन्मुख निर्विवाद रूप से यीशु अनुसरण करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है।
यूहन्ना 12:26 “यदि कोई यीशु मसीह की सेवा करना चाहता है? तो उसके पीछे हो ले।”
लूका 9:23 “यदि तुम यीशु मसीह के पीछे आना चाहता है, तो तुमको अपने आप का इंकार करना होगा, और फिर वो प्रतिदिन तुमको अपना क्रूस उठाते हुए, प्रभु यीशु मसीह पीछे चलना होगा।”
यूहन्ना 21:22 “तू मेरे पीछे हो ले।” लूका 5:27 यीशु ने मत्ती से कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
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6. प्रार्थना
प्रार्थना एक मसीही के जीवन की विशेषता होनी चाहिए।
लूका 21:36 ” तुम जागते रहो, और हर समय प्रार्थना करते रहो।”
लूका 22:40 “प्रार्थना करो की तुम सब लोग परीक्षा में न पड़ो।”
लूका 10:2 “इसलिए खेत के स्वामी से तुम विनती करो, कि वह अपने खेत काटने के लिए मजदूरों को भेज दे।”
लूका 6:8 “जो तुम्हारा अपमान करे, तो उनके लिए तुम प्रार्थना किया करो।”
7. बाइबल का अध्ययन करना
बाइबल का अध्ययन करना प्रत्येक विश्वासी जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।
यूहन्ना 5:39 “तुम पवित्र बाइबल में ढूंढते हो”- यह प्रत्येक मसीही के लिए यीशु मसीह की स्पष्ट आज्ञा है।
यूहन्ना 15: 20 “जो बात यीशु मसीह ने तुमसे कही थी, उसको बातों हमेशा याद रखो,” उनको पढ़ो, उसका अध्ययन किया करो।
8. अपने पड़ोसियों के प्रति हमारा कर्तव्य
कोण हमारा पड़ोसी है? हमारा पड़ोसी वह है, जो किसी परेशानी में पड़ा हुआ है। मत्ती 19:19 “और तुम अपने पड़ोसी से अपने ही समान प्रेम करो। “लूका 6:39 “और जैसा तुम लोग चाहते हो की लोग तुम्हारे साथ किया करें, तो तुम सब भी उन लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करो।”
9. दीनता
आइए हम दीनता, नम्रता और विनय में यीशु मसीह के समान बनें।मत्ती 11:29 ” येशु ने कहा मेरा जुआ तुम अपने ऊपर उठा लो, और तुम सब मुझसे सीखो, क्योकि में नम्र हूँ, और मन में दीन भी हूँ। “मरकुस 10:44 “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहता हो, वो पहले सबका दास बनें।